पवित्रता (वर्णिक चौपाई)
पवित्रता (वर्णिक चौपाई)
मापनी 112 112 112 112
रहता मन में जब पाप नहीं।
बसता हरिधाम सुजाप वहीं।।
सुखदायक स्थान वहीं बस है।
मन पावन ग्राम जहाँ अस है।।
चलता मन ईश पुकारत है।
अपना घर-द्वार बसावत है।।
दुख-कष्ट सदैव बुझावत है।
जब रामलला अपनावत है।।
अपने मन को समझाय चलो।
शुभ पावन वाक्य बनाय चलो।।
मत पाप करो मत सोच कभी।
अपना समझो मनमीत सभी।।
मन को समझो यह स्वच्छ रहे।
शिव ग्रन्थ पढ़े हर कष्ट सहे।।
जितना मन साफ रहे सुधरा।
उतना यह विश्व रहे सुथरा।।
दुख-शोक भगे मन निर्मल हो।
अनुराग-विराग सुकोमल हो।।
सबकी रसना पर ब्रह्म रहें।
सब मानव उन्नत पंथ गहें।।
जब जाप हिताय चला करता।
उर में शुचि भाव बना बहता।।
कदमों पर शीश झुके सब का।
मनमाफिक रूप बने मन का।।
Renu
23-Jan-2023 04:53 PM
👍👍🌺
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अदिति झा
21-Jan-2023 10:41 PM
Nice 👍🏼
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